![]() |
नकाब |
𑜫𑜫𑜫
देखा था मैंने
तुझे खुद को बारिश की बूंदो से जदोजहद करते हुए ताकि कही वो
तुझे छू कर ना गुजर जाए
लगा मुझे की सायद तुझे भाता नहीं
की कोई अनजान तुझे यूही छू कर गुजर जाए
पर जब हवाओ का मिजाज कुछ अलग सा हुवा
और समय ने अपना चादर फैलाया तो
मालूम हुवा की खा मखा मै ये सब भांप रहा था
तुझे तो डर था की कही वो बारिश की
बूंद तेरे मुख से तेरी नकाव को ना धो दे
by मोनू भगत
You are a good poet
ReplyDeleteYour poems give inspiration to me
than-kyou
ReplyDelete