Saturday, October 20, 2018

किसान की ऐक छोटी सी कहानी (भाग 02 )

majduri farmer kisaan
Majduri


(कृप्या भाग 01 
जरूर पढ़े सम्पूर्ण कहानी 
को जानने के लिए )

बस इतनी सी है कहानी 
ये सोच कर खुद की किस्मत कl दोस दे कर बैठा ही था

की मालिक का संदेश आया की हवेली पर जल्दी आना है 
मै कुछ सोचता और समझता इतना समय नहीं था
मेरे पास इसी  लिए बिना कुछ सोचे समझे 
मै मालिक के पास जाने के लिये निकल गया 

सरोस्वती की माँ पीछे से पूछी की कहाँ जा रहे हो 
आज रात में भी क्या सब भूखे ही सोयेंगे 

मैं  क्या जवाब देता
मैं  बस बिना कुछ बोले एक उदास चेहरा दिखा  कर वहाँ से निकल गया
सरोस्वती  मेरी उसी   बेटी का नाम है जिसके शादी के लिए मालिक से पैसा लिया था

सोचा मालिक के पास जा रहा हु तो आज रात मे  खाने के लिये  कुछ मांग कर ले आऊंगा

ईसी  लिए जल्दी जा रहा था ताकि जल्दी आजाऊंगा
क्यू की  सरोस्वती की  माँ तो कुछ कर नहीं पति थी 
तो सब काम बेटी को ही  करना था 
और वो अंधेरे में अच्छे से काम कर  पाती नहीं थी 

उसकी माँ का अगर पैर नहीं टुटा होता 
तो वो खुद कर लेती वैसे  बैठ कर वो बता देती है  
की  कौन   सा सामान कहा रखा हुवा है 

लेकिन  कर नहीं सकती थी उस रात  जब बारिस हुवा 
तो घर से धान का बोरा उठाते समय उसका पैर  फिसल  गया 
और वो भी काम का नहीं रहा 

खेर ये सब सोच ही  रहा था
की मालिक का  घर आगया  

मैं  अंदर गया तो काफी भीड़  जमा हुआ  था 
मालिक बोल रहे थे 

के सिर्फ तुम लोगो का नुकसान नहीं हुवा है 
मेरा भी बहुत नुकसान हुवा है ईसी लिए  कल से तुम सब जाओ और काम करो
मैं  वही नीचे बैठ कर मालिक का बात सुन रहा था 
कुछ एक घंटा बैठा तो भीड़  कम हुवा

मालिक ने देखा तो बोले  और सुरजा आगया  इधर आ मैं लम्बे कदम से  मालिक के तरफ बढ़ा 
और मालिक के कुर्सी के पास जा कर नीचे बैठ  गया
मालिक  बोलै की  देख सुरजा पूरा गांव का नुकसान हुवा है 
मेरा भी बहुत हुवा है
मई सब से  अपना उधर वापस मांग रहा हु 
मुझे नहीं पता कहा से और कैसे देगा 
मुझे बास चाहिए कुछ   दिन के अंदर
  
मैं मलिक के तरफ देखा और आँख से आसु  बहने लगा 

मैं  बोलता भी क्या उनको क्या क्या बताता  
मैं  ने बोला  मालिक मैं  कहा से पैसा दूंगा
मेरे  पास तो आज के रात तक का खाने के लिए  कोई अनाज नहीं है
मालिक बोले मई क्या करू जब जब तुम लोगो को मेरे जरूरत पड़ी तब  तुम सब को मदद किया है
आज मूझे  जरूरत है तो मैं  क्या नदी पार के लोगो से अपना पैसा वापस मांगू 
तुम लोगो से अपना पैसा ही  तो मांग रहा हु
  
खेर इतने देर मे  मालिकिन अंदर से मालिक को बोली कुछ  और मालिक बोले मरने दो इस को 

वो उनका एकलौता बेटा  था 
पूरा गांव जनता था की उनका बेटा   कुछ नहीं करता है

बुरी आदत लग गया  था  
बस  जुआ  और शराब  में  सब लुटा रहा था
मालिक इतना बोले 
देखो बहुत मुश्किल से मेरे बेटा  के लिए  
एक सरकारी योजना के दर्मिया आपदा में टूटे सरक  
और  दूसरे बांध का मरमत  करवाने का काम  मिला  है 
और पहले इस में अपना  पैसा लगा कर काम करवाना  होता है

खैर  तू ये सब  छोर  पैसा कब देगा अगर पूरा नहीं  है 
तो  आधा दे दे आधा तू महीना बाद दे दे 

मैं  मालिक को एक धीरे आवाज में बोला  
मेरा तो घर ही  उजर गया हैं 
खाने तक को अनाज नहीं है मालिक घर में 
और घरवाली का भी पैर  टूट गया है
मालिक मैं  छोटे मालिक के लिए  काम ही  कर देता हु 
कोई काम है भी नहीं 
आप को जो  सही लगे आप देख लेना
लेकिन मालिक तो पहले ही  सब को काम के लिए  बोल दिए थे 
मैं   जब आया था तो सब लोगो को काम ही  समझा रहे थे
ईसी लिए  मालिक ने बोला  अब तो आदमी सब को बोल दिया हु तेरे लिए  काम है नहीं 

अगर तेरी  बीवी काम कर पति तो उसके लिए  काम था 
खाना बने के लिए  कोई मिल नहीं रही है
क्यों की   मालिक का काम बांध के पार था बांध  को बनाने का 
तो सब को वही नदी के पार  जा कर रहना था 
और कोई औरत जा नहीं रही थी  सायद
तभी मालिकिन ने मालिक को फिर  से  अंदर से आवाज दिया 
और बोली देखो क्या कर रहा  है
मालिक मुझे बोले की  तू कल आ और चलेगये
  
मैं  बिना कुछ बोले वहा  से वापस आने के लिए  निकल गया 
जब घर आया 
तो देखा सरस्वती चूलाह   पर कुछ बना रही थी 

बिना पूछे उसके माँ ने बोला  
बेटी हो तो ऐसी  

देखो पता नहीं कहा से  साग तोर कर लाई  है 

आज रात को  यही खाआ  कर सो जाएंगे  

मैं हारा हुवा बैठा 
तो बेटी बोली  के मालिक के पास क्या हुवा
मैं  ने पानी का ईसारा  किया और सारी  बात घर में सब के सामने बताया 
घरवाली  तो रोने लगी की  
अब क्या करेंगे कहा से मालिक का पैसा देंगे
तो पीछे से धीरे से  बेटी बोली की  अगर मैं  जा कर खाना  बना दू 
तो मालिक मना  तो नहीं करेंगे ना  

मेरा मन नहीं था
मैं  कुछ जवाब देता 
की  बगल का शयाम आया घर में 
और बोला  अरे सूरज मालिक के पास देखा था तुझे
तू भी नदी के पर जाएगा क्या बांध बने के लीये
  
मैं  बोला  मालिक तो मना कर दिएे   है
और सारी  आपबीति  बताया 
तो क्या हुआ  मैं भी तो वही रहूँगा न 
जाने दे  मैं  चाहता तो नहीं था
की  जाये   पर करता भी क्या और कोई रास्ता था भी तो  नहीं 

मैं  न चाहते हुए भी बोला ठीक  है 
मैं  कल मालिक को बोलूंगा 
मालिक को जब बोला  तो मालिक बोले ठीक है जाने दे
और भोरे भोर मालिक का ट्रक्टर  
में सब को ले जाने के लिए  
मालिक ने बुलवाया  चौक पर 

और फिर  सब के साथ वो भी चली गई 

सरस्वती खाना बना रही थी  वहाँ 
बस 3  दिन ही  तो हुवा था उसको 
वहाँ  गये हुऐ
  
पर  छोटे मालिक जब  वहाँ  गए काम देखने तो 
सरस्वती छोटे मालिक को जा कर बोली 
मालिक  नमक खतम होगया है 
फिर  पता नहीं क्यू  
मालिक  ने सायद  नशा मे  उसको बोलै के बाप के घर से नमक ले कर नहीं आई  है क्या 


मैं  ये बात रो रो कर संभु को बता रहीं थी 
और तभी संभु ने बोला  तुम नदी के पर से आई  हो क्या 
चलो साइकिल पर बैठो तुम को पहले घर छोर देता हु 



भाग 03 
बहुत जल्द 
कुछ खास बिंदु भाग 03 से 
 आखिर मुझे वही क्यों मिला 
मालिक ने नशा में मेरी आबरू को रोंदने ....... 

(कृप्या भाग 01 
जरूर पढ़े सम्पूर्ण कहानी 

को जानने के लिए )












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