Friday, January 4, 2019

सासु माँ


                                                    
सासु माँ 

तीन हफ्ते से भी  ज्यादा बित चूका था ||

और बेटी ने जो कहा था की मै गाड़ी भेज दूंगी तुम अपना आजना , वो गाड़ी अभी तक आई नहीं थी || 

तभी तो  जब भी घर में किसी का फोन रिंग करता था ||

तो वह बूढ़ी औरत चौक जाती थी

कि क्या पता सायद  बेटी का ही फोन हो , और बोल रही हो

कि "माँ"  गाड़ी आज  जाएगी आपको लेने के लिए

पर  ऐसा  कभी होता नहीं था ||

और फिर वो उसी उम्मीद में  लेटी रहती थी || 

एक पुराने से चौकी पर ,जो उस बूढ़ी को लाचार होने का एहसास अपने मच मच के आवाज से करवाती रहती  थी || 

ऐसा नहीं था कि सिर्फ वह एक चौकी ही थी || जो उसके लाचार होने का एहसास हर पल करवाती थी

और भी एक मकड़ी का जाल से भरा हुआ रोशनदान था

जिस  से मानो  रोशनी आना तो चाहती ही नहीं  थी || 

पर फिर भी वह शायद बुढ़िया  को दीवाल पर उसके उजड़े हुए रूप का साया दिखाने आती थी ||

कभी कभी तो ऐसा लगता था कि वह जाल  भी हवा के झोंकों से नहीं  बल की उस के  लाचारी  पर हंसने के लिए लेहरा ती रहती  थी ||

पर यह सब कुछ खास थोड़ी ना था||

 यह तो होता ही है ||

घर पुराना , चौकी पुरानी , और वह झुर्रियों  से भरी औरत भी तो पुरानी ही थी ना ||

वैसे तो उसको फ्रिज का ठंडा पानी पीने का कोई आदत नहीं था || 

पर आज बहू ने वह पानी देने से भी यह कह कर मना कर दिया कि बैठे-बैठे पूरे दिन सिर्फ फ्रिज का ठंडा पानी पीती रहती है

और मैं या मेरे बच्चे क्या उसके नौकर है ||

जो बिस्तर पर खाना पानी बार-बार जा कर दे खुद तो महारानी की तरह लेटी  रहती है ||

यह बात भी कुछ सही ही बोल रही थी  वो ||

पूरे दिन तो वह एक ही रोशनदान से आधी आधी अधूरी रोशनी को एकटक होकर देखती रहती थी ||

पता नहीं किस मिट्टी की बनी हुई थी कि 1 साल से वंही  उसी चौकी पर वैसी ही लेटी हुई थी

अब उसमें उसकी बहू बेटी भी   क्या कर सकते थे  ||

अगर पूरा पीठ उसका सर गया था  , तो यह तो बहुत साधारण सी बात थी  ||

कि 1 साल से बस एक ही बिस्तर पर लेटी है || तो ऐसा तो होना ही  था

ऐसा नहीं था कि उसकी बहू जानबूझकर उसके कमरे में नहीं जाती थी ||

और वह जाती भी  तो कैसे , उस कमरे से इतना बदबू जो आता रहता था ||

और बदबू आती भी क्यों नहीं , लगता नहीं है की कभी वह एक टेढ़ा वाला थाली , और चिपका हुआ लोटा उसके खाने के बाद कभी धुला  भी होगा ||

वह खुद भी कम थोड़ी ना थी ||

कुछ ज्यादा ही सोख पाली  थी ||

क्या जरूरत था कि सफेद साड़ी से ही अपने सुकरे  हुए शरीर को ढके , अगर कोई और रंग होता तो कम से कम वह इतना गंदा तो नहीं होता ना , खून  का

धब्बा हर जगह तो नहीं दिखता ना जो उसके पैर से मनखी के काटने से निकलता रहता था  ||

इतनी पुरानी सोच के लोगों की हालत यही तो होती है ||

वरना आज तो पति के मरने के अगले दिन ही मुहल्ला में कानाफूसी शुरू हो जाता है ||

कि देखो अभी बीते बीते महीना भी नहीं हुआ उसके पति के मरे हुए ||

और वह कितना सिंगार करके हॉट  जाने लगी ||

और एक ये थी  जो 34 साल से पति के जाने के बाद भी वैसी की वैसी ही है ||

और ऐसा थोड़ी ना था की बेटा समझता नहीं था कि सब ठीक नहीं है मां के साथ ,

 पर वह बेचारा करता भी क्या ??

बहु तो जाती भी थी उस कमरे में जाती थी , भले वह कारण और  मंशा कुछ भी रहता हो

पर बेटा जाता भी तो क्यू  और कैसे आखिर बीवी के जैसे थोड़ी ना था ||

जो कि कमरे में जाकर माँ  को गाली देता

वह तो बेटा था ऐसा कैसे कर सकता था ||

पर फिर भी  आज सारी मोह माया छोड़कर जारहा  था

 उस कमरे में उस औरत से मिलने जिसने उसको 9 महीना अपने कोख में रखा था ||

पर रखती  भी क्यों नहीं वह तो हर मां का काम होता है ||

बच्चों को कोख में रखने का अगर किसी ने कोई बड़ा महत्वपूर्ण और एहसान किया है ||

तो वह तो बेटा और बहू है जो कर्तव्य नहीं होने के बाद भी अपनी मां को 1 साल से बिस्तर पर फ्री में

बैठा कर खिला रहा था ||

खेर ऐसा  लगता है की  उसके मां को शायद कोई काला जादू भी  आता था ||

इसीलिए अभी तक कमरे में शरीर पूरी तरह  से दाखिल भी नहीं हुआ था ||

और उसकी मां अपनी सरिया (लोहे की छड़) घुसे हुए पैर को कपड़े से ढकने  लगी ||

ताकि कहीं बेटा उसके पैर पर भीन  भीनाती मक्खी की आवाज सुनकर वापस ना हो जाए ||

अपने बालों को न जाने क्यों सवारने लगी  , अचानक से आज रोशनदान पर लगा हुआ जाल भी रुक गया और रोशनी भी तेजी  से अंदर आने  लगी मानो सब

आज खुश हो रहे  हो

कि कोई तो है , और यहां जो इस चुते (ऐसा कमरा जिस में बारिस के समय पानी गिरता हो /जिसका छत ख़राब हो ) कमरे में आ रहा है |

चेहरा पर आज झुरियां भी कुछ कम लगने लगी थी ||

चारों देशाये  मानो आज उस सुकरी  बुढ़िया के साथ खड़े होने को मचल रही थी ||

तभी तेज आवाज आया कि मां जगी हो कि सो रही हो ??

लम्बी  कदम से यू आया जैसे मानो बहुत जल्दी में हो ||

उस लंबे कदम और ऐठी  आवाज के बीच एक और आवाज सुनाई दी

कि बाबू , सोना बेटा , राजा कब आया दुकान से खाना खाया कि नहीं ||

यह आवाज खत्म होती कि उससे पहले एक और तीखी आवाज ने  उस कमरे से दस्तक  दिया

जल्दी आओ खाना ठंडा हो रहा है

वही चिपक गए हो क्या , अरे सुन भी रहे हो कि मां ने कान में रुई डाल दिया है

 खेर ये तो साधारण सी बात थी ||

वैसे तो झुर्रियों ने उसके  आँख को पूरी तरह से ढक दिया था ||

फिर भी जब आँख को उठा कर देख बेटे की तरफ तो चेहरा पर न जाने क्यों कुछ मांगने वाली भाव दिख  रहा था ||

पर यह तो गलत था ||

क्या था उस बुढ़िया के पास जो उसका बेटा मांगने आता "माँ " यह शब्द एक बार फिर सुनाई दिया

तुम्हारी बहू के बहन ,के बेटा का बर्थडे है

और सब को बुलाया है अब मैं घर में कोई कलह  नहीं चाहता ||

इसीलिए जाने से तुम्हारी बहू और बच्चे को नहीं मना कर रहा हूं

यह सुनने के बाद वह बुढ़िया अपने ठूठरी  हुई  जीव को अपने दांतों के बीच से निकाल ही रही थी

कुछ बोलने को तब ही एक और  आवाज आया

तुम्हारे पेंशन वाले अकाउंट में तो हर महीना 500 रुपऐ  आता है ना ||

सोच रहा हूं उसमें से ही ₹3000 निकाल कर यह काम कर लू

वैसे भी उसकी माँ कुछ बोल नहीं पाति फीर भी , साबधानी बरखते हुए बेटा जवाब को नजर अंदर करने के पूरी कोसिस के साथ


बिना कुछ जवाब सुने माँ  का हाथ बहुत आराम से पकड़कर अंगूठा का निशान लगा लिया बैंक के  कागज पर ||

और फिर जोर से बोल कर कि अरे , यार आ रहा हूं तुम खाना  निकालो और फिर  लंबे कदम से निकल गया

माँ अभी भी बास चुप चाप लेटी हुई थी वैसे ही जैसे एक साल से थी

खेर ये तो बहुत साधारण सी बात है ||

और बाहर जाते ही बीवी से बोला अरे यार कभी-कभी उस कमरे में झाड़ू भी मरवा दिया करो ||

कितना गंदा बदबू आ रहा था

सांस रोक कर बैठा हुआ था उस कमरे में

अच्छा थोड़ा

थोड़ा साबुन दो हाथ धोना है

फिर कुछ खाने का मन भी करेगा

 बुढ़िया के हाथ  के नाखून में कितना गंदा भरा हुआ था

उल्टी जैसा लग रहा है और बीवी ने बहुत जोर से बोला ये  बात सब मत बोलो मेरे बच्चे खाना खा रहे हैं


Friday, November 9, 2018

उम्मीद

उम्मीद

 खुद को खो कर तूझे

पाने की उम्मीद अभी बाकी हैं ||

टूट कर फिर से जुड़ने

की उम्मीद अभी बाकी है  ||   

शाम ढल चुकी

पर सुबह की उम्मीद अभी बाकी हैं  ||

राँह भटक गया

पर मंजिल की उम्मीद अभी बाकी है  ||   

आँधी तेज़ हैं

पर उसके थमने की उम्मीद अभी बाकी  हैं ||

दिल नाराज हैं

पर उसके मनाने  की उम्मीद अभी बाकी है ||

आसमा दूर हैं

पर उसको छूने की उम्मीद अभी बाकी  हैं ||

आँख नम हैं

पर होंठो पर हसी की उम्मीद अभी बाकी हैं ||

मन मौन हैं

पर कहानी सुनने की उम्मीद अभी बाकी हैं ||

दियां बूझ चुकी

पर रोशन दान से रौशनी की उम्मीद अभी बाकी है ||

हाथ छूट चूका

पर फिर से हाथ थाम लेने का उम्मीद अभी बाकि हैं ||

वो दूर हैं

पर फिर से गले लग जाने का उम्मीद अभी बाकी है ||

कविता अधूरी हैं

पर पूरी होने की उम्मीद अभी बाकी हैं  ||

Saturday, November 3, 2018

जन से जनता

gandhi

जन जन के मन मे है || 
                     
ये नारा ,

देश हमारा जन के द्वारा || 

जन से जन तक 

राह हमार || 

जन ही प्यारा ,

जन ही न्यारा ||  

जन के द्वारा सब कुछ न्यारा ,  

जन प्यारा जन ही है हमारा || 

जन मूझ में तो तुझ में मैं हु ,

बोल कहाँ किस में मै नहीं हु ||  

मै हु जन जन तू भी तो है ,

सचिन कलाम भी तो जन है ||   

रावण कंश भी तो एक जन थे ||  

ना जाने क्यों भटक गये थे ,

राम कृष्ण सब जन ही तो थे  

इसीलिए जन 

कार्य किये थे ||